पांच समस्याओं का बोलबाला


विगत कुछ दिनों से समाजिक तौर पर यह आकलन रहा है.... आज की मानवीय भावनाओं को देखकर कि हमारे देश कि प्रगति शीलता क्यों धीमी क्यों हैं.....?
मामला बड़ा ही दिलचस्प और सीधा सा है या तो हम अन्तराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी प्रकार की प्रतियोंगिता में चाहे फिर वह किसी भी क्षेत्र में कार्य कर रहे होते हैं उस सीमा तक या संतोषजनक नहीं पा रहे हैं, जैसा कि उम्मीदों के अनुसार होना चाहिये।
पिछले दिनों एक चर्चित पत्रिका में हमारे देश भावी विद्वान के विषय में एक प्रेरणाश्रोत लेख छापा हुआ था..... उसमें जो भी वाक्यांश लिखे हुये थे वो वाक्यांश किसी और के नहीं बल्कि हमारे महामहिम राष्ट्रपति महोदय के वक्तव्यों का उल्लेख किया गया था.....जिसमें युवाओं को प्रेरित करने के लिये कहा गया था कि स्वामी विवेकानंद एक चमकते हुये तारे है, युवाओं के लिये उस वक्तव्य में यह संदेश साफ तौर पर दिख रहा था कि प्रत्येक इंसान को अपनी छाप छोड़नी चाहिये... आपके क्रिया कलापों से प्रभावित लोग आपको सराहे...।
इस बात पर गौर किया जाये तो पूर्व महामहिम मुखर्जी जी कोई अकेले नहीं है जिन्होंने देशवासियों को स्वामी विवेकानंद जी की जीवनशैली को जीवन में उतारने की बात कही.... इस कतार में हमारे देश के प्रथम प्रधान मंत्री जिन्हें हम प्यार चाचा जी भी पुकारते हैं पं. जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी के वाक्यांशों में भी इस बात का उल्लेख देखने को कई प्रतियों मंे मिल जाता है।
यहां तक कि बात करे तो राष्ट्र कवि रवीन्द्र नाथ टैगोर ने भी साफ लफ्जों में कहा है कि यदि आप पूर्ण रूप से अपने देश को जानना और समझना चाहते हैं तो स्वामी विवेकानंद के बारे में जानना बहुत बेहतर है।

देश के पिछड़ी अर्थव्यवस्था के मुख्य बिन्दुओं के बारे में नीचे संक्षिप्त में प्रकाश डालने की कोशिश-

गरीबी- हमारे देश एक विकासशील देश है। इसमें जनसंख्या का 51 प्रतिशत से भी ज्यादा भाग युवा है। लेकिन गरीबी के चलते वह उन सभी कार्यों में ही संलग्न रह जाते है जो उनके पूर्वज करते है। बात सीधी है.... कोई भी व्यक्ति विकास की बात तब करेगा जब उसके पेट की क्षुधा को शांत कर दिया जाये... इसके विपरीत वह तो अपने रोजी-रोटी व परिवार के भरण-पोषण तक ही सीमित रह जाता है। जहां तक आंकड़ों का आंकलन किया जाये तो हमारे देश की 78 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या को 20 रूपये से कम में अपने रोजाना का हुक्का पानी चलाना पड़ता है। इससे समाज में अस्थिरिता स्थापित हो रही है।

खेतीः- वैसे तो देश की जनसंख्या का अधिकांश भाग कृषि पर आधारित है लेकिन किसी भी इंसान से देश की कृषि व्यवस्था के हालात छुपे नहीं है। हर साल सरकारें बनती हैं.... उन सरकारों के माध्यम से सम्बन्धित विभागों को कृषि कार्यों के उत्थान के लिये आदेश भी जारी किये जाते है। इसके वाबजूद भी हमारे देश का किसान आये दिन आत्महत्या के रूप में सुर्खियों में छाये रहते हैं। हर साल बजट तैयार किया जाता है लोक सभा में पेश भी होता है और बहुत सारी योजनाओं की सौगात आंकड़ों में दिखायी भी जाती है। ताज्जुब की बात तो यह है अगर इतना ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है कृषि पर तो फिर इतनी समस्या क्यों देश की अर्थव्यवस्था का  ये हाल यकीन नहीं होता.... किसान की माली हालत  दिन-ब-दिन बद से बत्तर होती जा रही है।

शिक्षाः- किसी विद्वान ने कहा है कि शिक्षा का मतलब यह कतई नहीं है कि बहुत सारी सूचनाओं को एकत्रित का दिमाग को एक लाइब्ररी बना लिया जाय, शिक्षा का स्तर इतना नीचे है कि आये दिन योजनाएं तो निकलती है लेकिन वह योजनाएं किस काम की जिनको समझा ही नहीं जा सकता या फिर व्यवहार में लाने के लिये कठिनाई प्रतीत हो.... विद्यार्थियों को उन सब चीजों का साक्षात्कार कराया जाना चाहिये जिससे उनकी अभिरूचि हो। मेरे हिसाब से वह इंसान जिसने सामाजिक चरित्र, राजनैतिक चरित्र व देश के विकास में अपना योगदान दिया हो कहीं बेहतर है जिसने पूरी पुस्तकालय को कंठस्थ कर लिया हो।

महिला सशक्तीकरणः- आज के दौर हर सरकार ये तावा बडे़ ही तवज्जों के साथ कर देती है कि उसके शासनकाल में महिला सशक्तीकरण जैसी समस्यओं पर पूर्णरूप से बल दिया जायेगा लेकिन वास्तविकता इसके कहीं विपरीत नजर आती है।
हाल ही में राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो की सलाना रिपोर्ट अगर नजर डाली जाये तो हालात तो और भी गिरते नजर आ रहे हैं। ये सारे आंकड़े इस बात को साफ तौर पर प्रदर्शित कर रहे हैं कि आज की महिला को सुरक्षा के अलावा भी और कई मोर्चों जैसे समाज में समानता और भी कई क्षेत्रों में विकराल समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
यहां पर स्वामी विवेकानंद के वाक्यांश पर प्रकाश डालना चाहूंगा ‘‘ महिलाओं को सिर्फ शिक्षित कर दीजिए वे खुद ही तय कर देंगी कि उन्हें किन क्षे़त्रों में समस्या हो रहीं है।’’
हमारे समाज में अब तक महिलाओं को सिर्फ समस्याओं से निजात पाने के लिये आंसू बहाने और दूसरों पर निर्भर रहने का प्रशिक्षण दिया जाता है.... और फिर हमारे समाज के कुछ लोग अपने आप का प्रतिष्ठित की श्रेणी में समझकर गौरान्वित महसूस  करते हैं।


युवा सशक्तिकरण:- महिला और पुरूष दोनों ही इस समाज को चलाने के लिये आधारभूत स्तम्भ हैं। न केवल महिलाओं बल्कि युवाओं के सशक्तिकरण पर देश की सरकार को बल देना चाहिये। आज कल युवाओं की ओर से इस तरह का मानक निकल के आ रहा है कि जो भी शिक्षा प्रणाली हमारे देश में चल रही है। उसमें किसी प्रकार की गुणवत्ता पर ही नहीं है। किसी भी कार्य को करने के लिये उस कार्य के विषय में जानकारी होनी आवश्यक है। एक निश्चित कार्य की जानकारी देने की बजाय युवाओं को केवल किताबी ज्ञान दिया जाता है जिससे वे वह नहीं बन पाते जो वह बनना चाहते हैं। हमारे यहां कि शिक्षा व्यवस्था व्यवहारिक ही नहीं है। दूसरे देशों को बचपन से ही उद्योग-धन्धों के बारे में जानकारी उनके पाठ्यक्रम में जोड़ दी जाती है लेकिन यहां बिल्कुल भी ऐसा नहीं है। यहां पर सिर्फ किताबी ज्ञान दिया जाता है जो कि आगे चलकर बेरोजगारी का कारण शाबित हो रहा है। इससे युवाओं में हीन भावना के साथ-साथ अनरगल कार्य की ओर अग्रसर होने की भावना का विकास हो रहा है।
- सत्या के.एस.

Comments

  1. Best games and payouts for slots - DrmCD
    Check out our list of the best casino games with jackpots, jackpots 남양주 출장마사지 and 대구광역 출장안마 progressive jackpots available online! You can find 여수 출장마사지 a 통영 출장마사지 variety of online slots 원주 출장샵

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

INDIAN POLITICS

Real Women's Place in India

हसरत