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Showing posts from December, 2018

पांच समस्याओं का बोलबाला

विगत कुछ दिनों से समाजिक तौर पर यह आकलन रहा है.... आज की मानवीय भावनाओं को देखकर कि हमारे देश कि प्रगति शीलता क्यों धीमी क्यों हैं.....? मामला बड़ा ही दिलचस्प और सीधा सा है या तो हम अन्तराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी प्रकार की प्रतियोंगिता में चाहे फिर वह किसी भी क्षेत्र में कार्य कर रहे होते हैं उस सीमा तक या संतोषजनक नहीं पा रहे हैं, जैसा कि उम्मीदों के अनुसार होना चाहिये। पिछले दिनों एक चर्चित पत्रिका में हमारे देश भावी विद्वान के विषय में एक प्रेरणाश्रोत लेख छापा हुआ था..... उसमें जो भी वाक्यांश लिखे हुये थे वो वाक्यांश किसी और के नहीं बल्कि हमारे महामहिम राष्ट्रपति महोदय के वक्तव्यों का उल्लेख किया गया था.....जिसमें युवाओं को प्रेरित करने के लिये कहा गया था कि स्वामी विवेकानंद एक चमकते हुये तारे है, युवाओं के लिये उस वक्तव्य में यह संदेश साफ तौर पर दिख रहा था कि प्रत्येक इंसान को अपनी छाप छोड़नी चाहिये. .. आपके क्रिया कलापों से प्रभावित लोग आपको सराहे...। इस बात पर गौर किया जाये तो पूर्व महामहिम मुखर्जी जी कोई अकेले नहीं है जिन्होंने देशवासियों को स्वामी विवेकानंद जी की जीवनशैल

राजनीजि और आज का समाज

राजनीति अपने आप में एक ऐसा शब्द जिसके सहारे न केवल किसी देश का आन्तरिक व वैश्विक ढ़ाचा निर्धारित होता है। अगर बात करें राजनीतिक व्यवहारिकता कि तो यह उन दिनों जैसी नहीं रही जिस प्रकार से अब है। आरोप-प्रत्यारोप का क्रम बढ़ता जा रहा है। आये दिन राजनीतिक पार्टियों एक दूसरे को किसी किसी रूप में आरोपित करती रहती हैं। जबकि अमुक पार्टी को देश की जनता द्वारा चुना जाता है...। जिससे समाजिक व आर्थिक रूप से देश की एक नई दिशा प्रदान हो सके... लेकिन व्यवहारिकता में ऐसी प्रतिक्रिया की दूर तलक कोई संरचना ही नहीं दिखायी देती है। फलतः देश व समाज अधोगति को प्राप्त हो जाता है। इस लेख में हम कुछ उन्हीं बिन्दुओं पर प्रकाश डालना चाहेंगे- पारदर्शिता:- व्यवहारिक तौर पर अगर देखा जाये तो हमारे देश में राजनीतिक क्षेत्र पारदर्शिता का आभाव हो गया है। जिससे जनता यह नहीं समझ पाती है कि अमुक व्यक्ति की छवि की वास्तविकता क्या है। कोई भी चैनल अगर किसी व्यक्ति विशेष के परिपेक्ष्य में सकारात्म छवि दिखलाता है तो वहीं दूसरी ओर सूचना के क्षेत्र में काम कर रहे दूसरे चैनल में उसके प्रतिकूल सूचना प्रसारित की जाती है। वास्त

आधुनिक भारत में शिक्षा का स्तर

भारत, जैसा की हम सब जानते हैं कि हमारा देश एक विकासशील देश है। हमारे देश की आबादी लगभग 2 अरब के समीप है। इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश को चलाने के लिये न केवल काबिलियत की जरूरत है बल्कि देश में शिक्षा का स्तर बढ़ाने की भी उतनी ही जरूरत है जितना की देश की हमारे देश की अपेक्षा  अन्य देशों में इसकी प्राथमिकता दी जाती है। किसी भी क्षेत्र में आज कल शिक्षा का स्तर चरम सीमा पर होना बहुत जरूरी है अब बात यह है कि अगर हमारे देश में शिक्षा प्रणाली का कार्य संतोषजनक व सराहनीय है तो इस देश की अर्थव्यवस्था का पहिया इतना धीमा क्यों हैं....? है न दोस्तो चैका देने वाला सवाल.....जी हां इस बारे में सोचना न केवल एक इंसान का काम होता है बल्कि देश के हर उस नागरिक का कार्य है कि वह अपने देश व समाज के बारे में एक नये सुगठित वातावरण का निमार्ण हो सके...। इसके लिये हम उन तथ्यों पर बात करेंगे जिसके माध्यम से किसी भी देश की आर्थिक स्थिति का जायजा लगाया जा सकता है। समानता:- यह एक ऐसी स्थिति है जो समाज को पूर्णरूपेण विकसित करने के लिये अति आवश्यक है और हो भी क्यों न आखिर यहां देखा जाये तो समानता का मतलब सीधे शब

हसरत

किसी भी इंसान की हसरतों को कभी भी खत्म होते नहीं देखा है। हां दोस्तों यही वह शब्द है जिसके माध्यम से कोई भी इंसान अपने आप को न केवल समाज में बल्कि भविष्य के सामने रि-प्रजेन्ट करता रहता है। हालांकि ये बात किस हद सही हो सकती है कि वह अपने लक्ष्य में काययाब है या नहीं लेकिन एक बात तो सबको माननी ही होगी कि हर इस हसरत के पीछे किसी न किसी अनुभवरूपी सेज स्थापित होती है। हर कोई किताबी ज्ञानों में उल्झा रहता है। अंततः वह यही सीख पाता है कि हमें इस व्यक्ति के जैसा बनना है... दोस्तों जबकि किसी भी व्यक्ति कि नोबेल या किताब इस बात को कभी नहीं आपके सामने रखती कि आप उसके जैसे बने..। दोस्तों किसी के भी विषय में जो भी कुछ किताबों में लिखा होता है। उससे हम न केवल उनके जीवन के बारे में बल्कि उनके जीवन में आयी उन सभी परेशानियों के भी बारे में जान सकते हैं और इस बात का प्रयत्न कर सकते हैं कि आपके जीने का तरीका उनके किये गये प्रयासों से कहीं बेहतर है। दोस्तों किसी के जैसा बनना आसान होता है लेकिन अपने आप में एक मिशाल बनना उतना ही कठिन क्यों होता है..? क्या कभी इस बात पर विचार किया.... आपको कई जगह देखन