राजनीजि और आज का समाज


राजनीति अपने आप में एक ऐसा शब्द जिसके सहारे न केवल किसी देश का आन्तरिक व वैश्विक ढ़ाचा निर्धारित होता है। अगर बात करें राजनीतिक व्यवहारिकता कि तो यह उन दिनों जैसी नहीं रही जिस प्रकार से अब है। आरोप-प्रत्यारोप का क्रम बढ़ता जा रहा है। आये दिन राजनीतिक पार्टियों एक दूसरे को किसी किसी रूप में आरोपित करती रहती हैं। जबकि अमुक पार्टी को देश की जनता द्वारा चुना जाता है...। जिससे समाजिक व आर्थिक रूप से देश की एक नई दिशा प्रदान हो सके... लेकिन व्यवहारिकता में ऐसी प्रतिक्रिया की दूर तलक कोई संरचना ही नहीं दिखायी देती है। फलतः देश व समाज अधोगति को प्राप्त हो जाता है।
इस लेख में हम कुछ उन्हीं बिन्दुओं पर प्रकाश डालना चाहेंगे-
पारदर्शिता:- व्यवहारिक तौर पर अगर देखा जाये तो हमारे देश में राजनीतिक क्षेत्र पारदर्शिता का आभाव हो गया है। जिससे जनता यह नहीं समझ पाती है कि अमुक व्यक्ति की छवि की वास्तविकता क्या है। कोई भी चैनल अगर किसी व्यक्ति विशेष के परिपेक्ष्य में सकारात्म छवि दिखलाता है तो वहीं दूसरी ओर सूचना के क्षेत्र में काम कर रहे दूसरे चैनल में उसके प्रतिकूल सूचना प्रसारित की जाती है। वास्तव अमुक व्यक्ति है क्या इस बारे में ठीक से प्रकाश ही नहीं डाला जाता है।
समाज में छवि:- कोई भी राजनीतिक पार्टी किसी भी व्यक्ति को जब अपनी पार्टी में सदस्यता देती है तो उसे इस बात पर जरूर गौर करना चाहिये कि समाज में अमुक व्यक्ति की छवि व समाज में वरीयता का स्तर क्या है। अगर किसी भी व्यक्ति की छवि समाज में अच्छी नहीं है और पार्टी उसे अपनी सदस्यता व पार्टी में वरीयता देती है तो इससे समाज के लिये व सत्ता में काबिज होने पर देश के लिये घातक स्थितियां पैदा होने का अंदेशा हो सकता है।
समाज की प्रतिक्रिया:- किसी भी पार्टी सत्ता में काबिज सत्ता पक्ष को हमेशा देश व समाज के हित रहकर कार्य करना चाहिये जबकि व्यवहार में अभी तक कुछ ही पार्टियों के चुनिंदा नेताओं ने इस तरह का कदम उठाया है। जबकि हालात बद से बदत्तर होते जा रहे हैं और सत्ता में आने के बाद प्रत्येक राजनीतिक पार्टी यही कहती है की हमारी अर्थव्यवस्था बुलन्दियों को छू रहीं है अगर ऐसा है तो बेरोजगारी की स्तर क्यों नहीं कम हो रहा है....? ये कहीं न कहीं सत्ता पक्ष को कटघरे में खड़ा कर देता है।
जातिवाद को बढ़ावाः- कुछ राजनीतिक दल अपने निजी स्वार्थ के लिये देश की जनता को वर्ग विशेष में बांट रहे हैं। जिसका फल यह निकल रहा है कि समाज में तनाव की स्थिति पैदा हो रहीं है। आगे आने वाले समय में ऐसा ही चलता रहा है देश में गृह युद्ध की स्थिति पैदा हो जायेगी जो देश की जनता व समाज के लिये घातक परिणाम ला सकती है।
आज समाज की स्थिति से हर मीडिया अंजान शाबित हो रहा है। वास्तव में समाज की छवि क्या बयां कर रही है इस बात से किसी भी स्तर तक न ही कोई कारगर कदम उठाया जा रहा है और न ही देश की अर्थव्यवस्था पर कोई तर्कपूर्ण कार्य किया जा रहा है सिर्फ और सिर्फ आंकणों में प्रदर्शित किया जा रहा है जो कि बिल्कुल उचित नहीं है।
सत्या के.एस.

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