Real Women's Place in India

 आदिकाल से ही पुराणों में जिस भारतवर्ष के अस्तित्व की चर्चा है, उपनिषद जिस भारत की व्याख्या करते हैं क्या वह भारत महिलाओं के संदर्भ में सचमुच ही महान है या बस किताबो में ही महान है?? आइए मेरे चक्षुओं व विचारो के माध्यम से चर्चा करते हैं। आपके विचार व सुझाव भी विनम्रता पूर्वक आमंत्रित हैं।🙏

दरअसल हमारे भारत के भूगोल ने महिलाओं के संदर्भ में विचित्र इतिहास के कालखण्डों को जन्म दिया। मातृसत्तात्मक सिंधु सभ्यता के काल(5000 वर्ष पूर्व) मे जहां महिलाओं का सम्मान सर्वोच्च स्तर पर था वह उत्तरवर्ती समय मे लगातार कम होता गया, ऋग्वेदिक काल मे सिंधु सभ्यता की अपेक्षा महिलाओं की स्थितियो में कुछ गिरावटें अवश्य आयी पर फिर भी उनके पास सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक अधिकार कुछ हद तक मौजूद रहे। वे अपनी मर्जी से सामान्य व विधवा विवाह कर सकती थी, शिक्षा प्राप्त कर सकती थी, रोजगार धारण कर सकती थी, सभा समितियो में कार्यपालिका के अंतर्गत हिस्सा ले सकती थी, बहुविवाह प्रथा, सती प्रथा जैसी कुरीतियों का अस्तित्व नही था।
पर पितृसत्तात्मक वैदिक काल(3000 वर्ष पूर्व) तक आते आते महिलाओं की स्थिति अत्यंत निम्न हो गयी और गुप्त काल तक तो वस्तुतः दयनीय हो गयी। अब महिलाएं चारदीवारी में सीमित हो गयी, उससे शिक्षा के साथ सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक अधिकार छीन लिए गए, कम आयु में विवाह, बहुविवाह, पर्दा प्रथा, सती प्रथा, विधवाओं का शोषण, ऑनर किलिंग, देवदासी प्रथा और भी न जाने कितने दंशों में महिलाओं को समेट दिया गया। अर्थात एक महिला को जानवर से भी ज्यादा अमर्यादित जीवन मे धकेल दिया गया गया। वस्तुतः यहां से पितृसत्तात्मक व्यवस्था का सबसे घिनौना रूप अस्तित्व में आ गया जहां महिलाओं को पुरुषों के अत्यधिक अधीन बनाकर उनका वस्तुकरण तक किया गया, मुस्लिम समाज मे तो यह स्थिति और भी निम्नतम व दयनीय रही है।
गौरतलब है कि लगभग 3000 वर्षो के बाद 19वीं सदी के आरम्भ में जब आधुनिक धर्म सुधार की नींव राजा राममोहन राय ने रखी तब महिलाओं की स्थितियों को समझने का पहला तार्किक प्रयास हुआ। केशव चन्द्र सेन, विद्यासागर, बहराम जी मालाबारी, हरविलास शारदा के प्रयासों से पहली बार महिलाओं की वस्तुस्थिति पर प्रकाश डाला गया और अकल्पनीय प्रयासों से पितृसत्तात्मक खोपड़ियों के अत्यधिक विरोध के बावजूद महिलाओं के हितों में कुछ सुरक्षात्मक कानून बनाये गए, पर ये सभी कानून महिलाओं को पूर्ण सुरक्षा देने में फिर भी ज्यादा सफल नही हो पाए।
आज़ादी के दौरान सावित्रीबाई व ज्योतिबाफुले जैसे समाज सुधारकों व आज़ादी के पश्चात पश्चात गांधी, लाजपत राय, अरबिंदो घोष, सूर्यसेन, डॉ आंबेडकर, पटेल व नेहरू जैसे नेताओं के प्रयासों से महिलाओं को पूर्ण सुरक्षा दिए जाने के संदर्भ में और उन्हें पुरुषों के समान अधिकार दिए जाने के संदर्भ में विस्तृत प्रावधानों का ज़खीरा तैयार हुआ और हिन्दू कॉड बिल व संविधान की परिधि में बहुत से सुरक्षात्मक प्रावधान शामिल भी किये गये और ऐसे ही प्रयास अनवरत जारी भी हैं। आज महिला आयोग, मानवाधिकार आयोग, विशाखा मामले में सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देश से लेकर गृह एवं महिला व बाल विकास मंत्रालय सहित अन्य मन्त्रालयो के चार्टर व मेनिफेस्टो में भी भर भरकर महिलाओं के सशक्तिकरण हेतु विभिन्न कानूनी सुरक्षात्मक उपाय शामिल हैं।
पर.....
क्या महिला वस्तुतः सुरक्षित है??
क्या NCRB के आंकड़ो में महिलाओं के साथ बलात्कार व घिनोने कृत्यों की हर साल दरें नही बढ़ रही हैं??
क्या महिला के पास वस्तुतः सभी अधिकार ज़मीन पर मौजूद हैं??
क्या महिला का देश के हर जरूरी क्षेत्र मे समुचित प्रतिनिधित्व है??
क्या महिलाओं अपने पैरों की बेड़ियों से सचमुच आज़ाद है या उन्हें उन बेड़ियों का एहसास मात्र तक भी है??
क्या वस्तुतः महिलाओं का समुचित सम्मान घर के बाहर तो दूर की बात, घर तक मे भी होता है??
क्या हम और आप अपने ही घर मे अपनी बहन, माता, बच्ची, पत्नी को अपने भाई, बच्चे, पिता से अधिक महत्व देते हैं??
क्या हम में से अधिकांश महिला को केवल एक जिस्म के तौर पर, सेक्स मशीन या बच्चा पैदा करने की मशीन के रूप में नही देखते हैं??
क्या हम महिलाओं की नैसर्गिक स्थितियां जिनमे मासिक धर्म से लेकर अन्य पीड़ाऐं तक शामिल हैं; को समझने का प्रयास करते हैं??
क्या हम सच मे कह सकते हैं कि अधिकांश महिलाऐं अपने खुद के घर मे, कार्यस्थल पर, समागम के स्थानों पर व अंततः समाज मे असहज महसूस नही करती हैं??
गौरतलब है कि आज हर एक महिला किसी न किसी डिग्री में उपरोक्त चक्रव्यूह में अनिवार्यतः फंसी हुई ही हैं।।
अगर आप वस्तुतः मानवता के मूल्य से युक्त हैं तो उपरोक्त प्रश्नों पर आपका जवाब "नही" ही होगा और आप समझ सकेंगे कि वस्तुस्थिति सामान्य नही हैं। और अगर ऐसा है तो आप यह भी समझ सकते हैं कि वर्तमान भारत मे भी महिलाओं की स्थितियां बदतर ही है बेशक उनके ऊपर कानूनन या राजकीय सुरक्षा का छदम आवरण दिखता प्रतीत होता है। आज संविधान से लेकर अन्य विधि-विधानों में भी महिलाओं की स्थितियों में सुधार हेतु हज़ारो प्रयास शामिल है पर ऐसा क्या है कि इतना सब कुछ होने के बावजूद भी महिलाओं को समुचित सम्मान नही मिल सका है तो उसका जवाब है महिलाओं और पुरुषों दोनो की "पितृसत्तात्मक मानसिकता"//
जिस प्रकार एक पौधे को जन्म लेने के लिए मिट्टी व पानी के अलावा सूर्य प्रकाश व अन्य जरूरी तत्वों की आवश्यकता पड़ती है उसी प्रकार महिलाओं की सुरक्षा, सशक्तिकरण व समानता को स्थायित्व देने हेतु कानूनों के अलावा अन्य बहुत से घटको की भी आवश्यकता पड़ती है; जिसमे शामिल है-
•प्राइमरी शिक्षा से ही बच्चों को महिला संवेदनशीलता के बारे में पढ़ाया जाना।
•देश मे सभी शिक्षा संस्थानों को को-एड बनाना ताकि बच्चे-बच्चियां बचपन से ही एक दूसरे की मानसिक व शारीरिक बनावटों की बारीकियों को समझ सकें।
•किशोरों-किशोरियों को परिवार से ही व सामाजीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत पुरातन रूढ़िवादी मानसिकता से इतर वास्तविक, वैज्ञानिक व आधुनिक समतामूलक ज्ञान सिखाने का प्रयास करना।
•पितृसत्तात्मक मानसिकता का त्याग कर पुरुषों को महिलाओं को बराबरी का सम्मान देना।
•देश के हर क्षेत्र में महिलाओं की उपलब्धियों के प्रोत्साहन हेतु कार्य करना व उनकी सफलता की प्रशंसा करना ताकि वें उत्साह के साथ और भी ज्यादा जज्बे के साथ अपना व नारी का सम्मान बढ़ा सकें।
•महिलाओं द्वारा एकतरफा पितृसत्तात्मक व्यवस्था का पुरज़ोर विरोध करना ताकि समाज मे बच्चे-बच्चियों को बचपन से ही समान आंका जाने का चलन हो सके।
•और भी बहुत सारे प्रयास किये जा सकते हैं।
पर आप शायद यह भी समझ सकते होंगे कि इस स्तर को प्राप्त करने हेतु मजबूत इच्छाशक्ति व दृढ़संकल्प की आवश्यकता होने के साथ आपके व्यक्तित्व मे त्याग, परोपकार, समानता व मानवता का मूल्य भी शामिल होना अपरिहार्य है। और जो व्यक्ति इन मूल्यों को अंतर्निहित किये बिना नारी उत्थान की कल्पना करता है वह वस्तुतः बेचारा या लाचार ही हो सकता है, क्योंकि ऐसे मूल्य पुरुष वर्ग में केवल वास्तविक "मर्द" ही अपने चरित्र में शामिल कर सकता है। और इसकी शुरुआत अपने ही घर से की भी जा सकती है।
आइए हम सब मिलकर एक समतामूलक भारत का स्वप्न पूरा करने हेतु अपना योगदान देते हैं, जहां हर एक जिम्मेदार व्यक्ति का व्यवहार धर्म, जाति, लिंग, क्षेत्र से ऊपर उठकर मानवता के मूल्य से सुसज्जित हो। satyam gupta

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